
बिलासपुर। राजधानी रायपुर के होटल वुड केसल में आयोजित 2 दिवसीय राजभाषा आयोग के अष्टम अधिवेशन के पहले दिन “पुरखा के सुरता” छत्तीसगढ़ी साहित्य के रचयिता स्मृतिशेष डा.पालेश्वर प्रसाद शर्मा व दानेश्वर शर्मा , संत कवि पवन दीवान के साथ डा.विमलकुमार पाठक एवं मुकुंद कौशल की रचनाए छाई रही।

रविवार को इसका समापन होगा। डा. पालेश्वर प्रसाद शर्मा की कालजयी रचना को याद करते हुए डा.देवधर महंत ने कहा कि छत्तीसगढ़ , छत्तीसगढ़ी भाषा और छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति को जानना है , तो डा. पालेश्वर प्रसाद शर्मा को जानना होगा। उनके दुर्लभ शोध प्रबंध “छत्तीसगढ़ के कृषक जीवन की शब्दावली” और उनकी कृतियों को पढ़ना होगा। डा. शर्मा ने छत्तीसगढ़ी में अनेक कालजयी कहानियां लिखकर छत्तीसगढ़ी गद्य को उसके मुकाम तक पहुचाया।
125 सप्ताह तक दैनिक अखबार में प्रकाशित उनका धारावाहिक गुड़ी के गोठ ने छत्तीसगढ़ी भाषा का वृहद पाठक वर्ग तैयार किया। उन्हें सही अर्थों में छत्तीसगढ़ी गद्य का प्रवर्तक माना जाना चाहिए। उन्होने उन्हें छत्तीसगढ़ी का प्रथम सितारा कवि बताया। ललित शर्मा ने संत पवन दीवान को उनके छत्तीसगढ़ आंदोलन में सक्रिय सहभागिता और उनके गीत यात्रा को याद किया। वही डा.अनुसुइया अग्रवाल ने डॉ विनय पाठक के छत्तीसगढ़ी काव्य की विकास यात्रा में उनके योगदान का स्मरण किया। तो सरला शर्मा ने कवि सम्मेलन के पुरोधा मुकुंद कौशल की रचनाओं उनके छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल को याद किया।अध्यक्षीय उद्बोधन डा.विनय पाठक ने दिया।

