
0शहर में चिकित्सा का माहौल हर कदम पर कोई कातिल है जैसा,
0नसबंदी कांड के दौरान जहरीली दवाइयों से मौत के बाद अब ऑपरेशन से पीड़िता की जान सांसत में*
0 सरकार के वेतन से नही भर रहा कुछ डॉक्टरों का पेट, कमाई के चक्कर मे ले जा रहे निजी अस्पताल
0 मामला जिला अस्पताल की डॉक्टर वंदना चौधरी द्वारा एसकेबी हॉस्पिटल में ऑपरेशन करने का

विलासपुर। जरहभाटा के एसकेबी कांड में सीएमओ ने अलग अलग तीन जांच कमेटी का गठन कर 3 दिन के अंदर रिपोर्ट प्रस्तुत करने निर्देश दिया है।
ये है मामला

मामला तिफरा फ्लाईओवर के पास शासकीय जमुना प्रसाद वर्मा कालेज के बगल में स्थित एसकेबी हॉस्पिटल का है। तखतपुर क्षेत्र के ग्राम लखासर निवासी सखाराम निर्मलकर ने बताया कि वे अपनी बेटी सुमन को नसबंदी ऑपरेशन के लिए जिला अस्पताल लेकर आये थे। जहां डॉ वंदना चौधरी ने परीक्षण के बाद उन्हें नसबंदी के लिए जरहभाटा के एसकेबी हॉस्पिटल ले जाने कहा कि वहाँ 15-17 हजार में अच्छे से ऑपरेशन हो जाएगा। श्री निर्मलकर ने बताया कि उनकी बात मानकर वे अपनी बेटी सुमन को एसकेबी हॉस्पिटल ले गए शाम को ऑपरेशन के बाद जब सुमन को वार्ड में शिफ्ट किया गया। दर्द और लगातार उल्टियां होने के बाद भी सुमन को यह कहकर छुट्टी दे दी गई कि किसी तरह की तकलीफ नहीं होगी ले जाइए और होगी तो फोन कर लेंगे। घर मे उसकी तबियत और बिगड़ गई वह रातभर दर्द से कराहती रही दूसरे दिन जब वे लोग उसे फिर जिला अस्पताल लेकर पहुंचे तो वहां स्थिति बिगड़ने पर अपोलो ले जाया गया। सखाराम ने बताया कि अपोलो में जांच के दौरान पता चला कि नसबंदी ऑपरेशन के दौरान उसकी आंत कट – फट गई. बड़ी मुश्किल से उसकी जान बच सकी अभी भी उसका इलाज चल रहा। पीड़िता के पिता ने कलेक्टर, एसपी , सीएमएचओ और मंत्री विधायको को शिकायत की प्रति सौप अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टर के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की मांग की ताकि फिर किसी बेटी के साथ ऐसा ना हो अब देखना होगा कि स्वास्थ्य महकमा और प्रशासन सुशासन के दावे वाली सरकार के इस दावे को कैसे और कब तक पूरा करती है।
लग गए 7 लाख इलाज जारी
केस बिगड़ने पर पीड़ित महिला को एसकेबी हॉस्पिटल से जिला अस्पताल और जिला अस्पताल से अपोलो ले जाना पड़ा। अब तक 7.50 लाख रुपये लग गए,।
लगातार लापरवाही, नो कार्रवाई
पब्लिक अब जान गई है कि निरीक्षण बैठक, जांच, रिपोर्ट ये सबका मतलब क्या होता क्या है, सब देख रहै इसी न्यायधानी के एक हॉस्पिटल में एक मरीज के एक की बजाय दूसरे पैर का ऑपरेशन कर दिया गया। एक अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही से तो नवजात बच्चे के हाथ को राजधानी के अस्पताल में कटवाकर उसकी जान बचानी पड़ी। कोरोना त्रासदी के दौरान 100 से अधिक शिकायते निजी अस्पतालों के खिलाफ आई लगातार हंगामा हुआ पर आज तक किसी की जांच नही की गई।
मंगलसूत्र कांड में भेज कोर्ट
मंगलसुत्र- चर्चित किम्स में सरकारी योजना को नकार प्रसूता को दो दिन में छुट्टी देने और दुर्व्यव्हार कर मरीज के पति से मंगलसुत्र गिरवी रखवाकर बिल वसूलने के आरोप लगे पर जांच रिपोर्ट आने के बाद निजी अस्पताल संचालक के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय पुलिस चौकी की तरह कोर्ट जाने का फेना टिका दिया।
आयुष्मान के बाद भी क्यो चिकित्सा आम आदमी के बस से बाहर
सरकारी ढोल में कितना पोल है इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है। चिकित्सा इतनी महंगी हो गई कि नसबंदी से बिगड़े केस के बाद एक पिता को अपनी बेटी की जान बचाने लिए 7 लाख रुपये में चिकित्सा लेना पड़ा। एक मिस्त्री अपोलो में ब्रेन हैमरेज से भर्ती है उसके ऑपरेशन का 3 लाख 50 हजार और आईसीयू का 40 हजार रुपये रोजाना का खर्च बताया गया। आयुष्मान यहां कबूल नही इसलिए उसके परिवार के लोग रकम के इंतेजाम करने भटक रहे।
हालात ये है ऐसे में पहले से ही ले देकर परिवार की गाड़ी खिंचने वाले मध्यमवर्गीय और गरीब परिवार अपने या अपने परिजनों के इलाज के लिए इतनी बड़ी रकम कहा से लाएंगे ये बड़ा सवाल है।
सीएमएचओ ने कहा गलत है होगी जांच
सीएमएचओ डॉ प्रमोद तिवारी ने कहा कि जिला अस्पताल की डॉ वंदना चौधरी द्वारा सरकारी अस्पताल से मरीज को ऑपरेशन के लिए एसकेबी
हॉस्पिटल ले जाना सरासर गलत है। नर्सिंग होम एक्ट, जिला अस्पताल और सीएमएचओ की तीन अलग-अलग जांच कमेटी गठित की गई है, रिपोर्ट आने के बाद दोषियों के खिलाफ विधि सम्मत कार्रवाई की जाएगी।
0000
डॉ प्रमोद तिवारी
सीएमएचओ बिलासपुर

