

बिलासपुर । मिशन 2023 भाजपा के नाम रहा। मीडिया समूह और अंक ज्योतिषाचार्य मतदाताओं की नब्ज टटोलने में फैल रहे और फिर 5 साल से पदस्थ कांग्रेस सरकार को नकार जनता ने भाजपा के पक्ष में जनमत दिया। चुनाव में गुंडागर्दी को खत्म कर शहर को अपराध मुक्त करने के दावे का मुद्दा छाया रहा। सरकार तो बन गई पर हालात नही बदले हर दूसरे दिन देर रात तक शराब परोसने वाले होटल बार और पब से मारपीट चाकूबाजी और दंगे की खबरे आ रही है। कानून व्यवस्था का आलम ये है कि बस स्टैंड शराब भट्टी एरिया में एक युवक की बियर की बोतल तोड़ गले मे घुसेड़कर हत्या तक कर दी गई।
पुराने नेताओ को किनारे लगा नए कार्यकर्ताओ और नेताओं को आगे बढ़ाने के भारतीय जनता पार्टी के फार्मूले ने कद्दावर नेताओ को चुनाव जीतने के बाद उन्हें कोंटा पकड़ा दिया। लोग कह रहे कि यह अनुभवी नेताओ को कोंटा पकड़ाने का दुष्परिणाम है नए नेता अपने पावर तक को नही जान पा रहे पुलिस और प्रशासन पर पकड़ ढीली होने के कारण ऐसी स्थिति निर्मित हो रही।
मंत्रिमंडल में 2 मंत्रियों के पद रिक्त है पर दावेदारों की तादात इससे दुगुना और तिगुना है।
एमपी के जमाने से रहा बिलासपुर का दबदबा
मध्यप्रदेश शासनकाल से प्रदेश के नेतृत्व में बिलासपुर का दबदबा रहा। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद भी सन 2018 तक बिलासपुर का मंत्रिमंडल और राजनीति में दबदबा रहा। यहाँ से चार-चार, पांच-पांच मंत्री, विधान सभा अध्यक्ष उपाध्यक्ष नेता प्रतिपक्ष सब रहे। 2018 मे कांग्रेस के वक्त है बदलाव का के नारे के साथ कांग्रेस सत्तासीन हुई। तब से बिलासपुर नेतृत्व विहीन रहा अभी भी मुंगेली के उपमख्यमंत्री और लोरमी के सांसद है। दरबार भी बिलासपुर में लग रहा गिन के यही दरवाजे है भीड़ इतनी की खुद मंत्री अकबका जा रहे किसकी सुने क्या करे लोग और कार्यकर्ता कहते फिर रहे को बस स्वागत और भाषण ही साय साय हो रहा किसी का काम नही हो रहा कोई सुनवाई नही हो रही अपराध बढ़ रहे सो अलग।
सम्भागीय और जातीय संतुलन का दौर
पहले प्रदेश में 16 जिले थे अब 33 जिले हो गए हैं। अब तक केवल जातिगत समीकरण को साधने काम किया जाता था पर अब संभागों के प्रतिनिधित्व को भी ध्यान में रखना पड़ रहा। चर्चा है कि प्रदेश में 5 सम्भाग है बिलासपुर सम्भाग से एक उपमख्यमंत्री और नए दो मंत्री प्रदेश मंत्रिमंडल में है ऐसे में अब क्या बिलासपुर को प्रतिनिधित्व मिलेगा यह बड़ा सवाल है।

