
बिलासपुर,,,, जिले में खनिज की चोरी और खनिज विभाग की कार्रवाई साबर की चोरी और सुई के जुर्माने की तर्ज पर चल रहा है! रोजाना रेत माफिया नदियों से सैकड़ो हाईवा और ट्रेक्टर के जरिये का अवैध उत्खनन और परिवहन करा रहे है! जिसमे सत्ता पक्ष के एक नेता का भी नाम सामने आ रहा है! खनिज महकमा 3-4 ट्रैक्टर पर कार्रवाई दिखा आस्तीन चढ़ा रहा। महकमे के अफसर अब खारुन नदी, से रेत का अवैध उत्खनन करते 4 ट्रेक्टर को पकड़कर रतनपुर, और सीपत पुलिस को सौपने का दावा कर रहै। इससे भी शर्मनाक बात यह है कि ट्रैक्टर की स्टेयरिंग थामहने और इसमें रेत भरने का काम गरीब आदिवासी बच्चों से कराया जा रहा, पर न तो ये आरटीओ को दिखाई दे रहा न स्थानीय पुलिस को न श्रम विभाग को और न ही जिला प्रशासन के अफसरों को।


जब – जब सत्ता परिवर्तित होती है, सत्तासीन नेताओ के पिछलग्गू सबसे पहला हाथ रेत के अवैध कारोबार में ही डालते है! क्योंकि इसमें लंबा माल है! रेत की चोरी नही बल्कि खुली डकैती का ये खेल पूरे प्रदेश में चल रहा है! दनादन गोलिया चल रही है! लगातार जनाक्रोश भड़क रहा है!सरकार की फजीहत हो रही है!यदि समय रहते शासन प्रशासन ने रेत के इस अवैध कारोबार पर प्रभावी रोक नही लगाई , तो किसी भी दिन कोई बडी अनहोनी हो सकती है!

ये है आँख खोलने वाली शर्मनाक तस्वीरे…

अवैध रेत खनन की ये शर्मनाक तस्वीरे बिलासपुर जिले के कोटा थानांतर्गत ग्राम पंचायत टाटीधार और आसपास के क्षेत्र की है, जहां संरक्षित बैगा आदिवासी परिवार के बच्चों को आगे कर रेत माफिया खेल कहे रहे है। इन बैगा आदिवासी बच्चों से ट्रैक्टर चलवाने और ट्रैक्टर में रेत भरवाने का काम कराया जा रहा जो बाल श्रम कानून का खुला उलंघन है, एक सामाजिक कार्यकर्ता ने प्रशासन से इसकी शिकायत तक की। जबकि जिले में बाल श्रम को रोकने शासन की तमाम योजनाएं है, इतना बड़ा श्रम विभाग है। बैगा जनजाति के इन बच्चों की उम्र 7 से 13-14 वर्ष के बीच बताई जा रही। इनमे 13- 14 साल का ये बच्चा ट्रैक्टर चलाने और 7-8 साल के बच्चे रेत की ढुलाई कर ट्रैक्टर को भरने कज़ काम करते है, इन बच्चों से ऐसा खतरनाक काम करा उनके भविष्य के साथ कैसा खिलवाड़ किया जा रहा आप खुद देखिये…
किसी विभाग को नही समाजिक कार्यकर्ता को दिखा
इस मामले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता एवं RTI एक्टिविस्ट प्रदीप कुमार शर्मा ने प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करते हुए बताया कि इन छोटे- छोटे बच्चों को पैसों का लालच दे स्कूल से ले जाकर मजदूरी कराया जा रहा। सामाजिक कार्यकर्ता ने प्रशासन से
- बालश्रम में संलिप्त बच्चों की पहचान कर उन्हें शिक्षा से जोड़ने।
- बालश्रम कराने वाले व्यक्तियों पर कड़ी कार्रवाई कराने
- बैगा समुदाय के परिवारों को वैकल्पिक और सम्मानजनक आजीविका उपलब्ध कराने की मांग की है।
है प्रावधान, पर करे कौन
बालश्रम निषेध अधिनियम 1986 के तहत भारतवर्ष में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से मजदूरी कराना दंडनीय अपराध है। इसके लिए नियोक्ता को जेल और जुर्माने की सजा का प्रावधान है। पर करे कौन क्योकि मामला रसूखदारों का है, सबने देखा कि कैसे प्रशासन को निरतू रेत खदान गोलीकांड को निबटाना पड़ा। अब देखना होगा कि प्रशासन इस संवेदनशील मामले में कितनी तत्परता दिखाता है ।
,बेशर्मों तुम्हें मां का दूध नहीं उसकी छाती का लहू चाहिए,- महेश दुबे“
कांग्रेस के बेबाक नेता और सामाजिक कार्यकर्ता महेश दुबे का शासन- प्रशासन और खनिज माफियाओं को चुनौती देने वाला ये लेख इन दिनों बेहद चर्चा में है…

“नदी से पानी नहीं, रेत चाहिए उलीच लीजिए रेत,बेशर्मों तुम्हें मां का दूध नहीं उसकी छाती का खून चाहिए,”सरकार बदला है रवैए नहीं । अरपा सहित सभी नदियों के बेखौफ उत्खनन के चलते, जीवनदायी महत्व के बावजूद नदियाँ विनाश के कगार पर खड़ी है नदियाँ,जो कभी जीवनदायिनी थीं,आज बेदर्दी से हो रहें उत्खनन के चलतें दूषित हो रही हैं,जिससे उनका अस्तित्व खतरे में है, रेत के अभाव के कारण नदियाँ अपने प्राकृतिक स्वरूप से दूर होती जा रही हैं, जिससे जैव विविधता को नुकसान हो रहा है!
रेत माफियाओं ने अवैध रेत खनन को एक संपन्न उद्योग में बदल दिया है,रंगरूट युवाओं और ग्रामीणों को पैसे, पावर और हम देख लेंगे के वायदे से बरगलाया जा रहा है. अपराध और गड्ढायुक्त नदियां एक ही सिक्के के दो पहलू बन चुके हैं.!
भोजन, जल, बिजली, परिवहन, स्वच्छता, मनोरंजन आदि के स्रोत के रूप में नदियाँ समृद्ध और विविध पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करती हैं जो विश्व भर में मानव समाजों की रीढ़ की हड्डी के रूप में कार्य करती हैं,रेत-खनन से नदियों का प्रवाह-पथ प्रभावित होता है,जिसे निकटवर्ती क्षेत्रों का भू-जल स्तर बुरी तरह प्रभावित हो गया है,प्राकृतिक रूप से पानी को शुद्ध करने में रेत की बड़ी भूमिका होती है,रेत खनन के कारण नदियों की स्वतः जल को साफ कर सकने की क्षमता पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है!!
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